बातचीत बदलाव की (अनुशीर्षक में पढ़ें) “वक़्त बीतने में वक़्त नहीं लगता, ये बात तुमसे रूबरू होने पर बखूबी समझ आ रही है मुझे” ,अनुजा ने कहा। “तुम्हारे दिल के इस अहसास को ज़रा मुझे भी समझाओ ना” , अग्रजा ने कहा। “वक़्त के साथ बदलाव आना लाजिमी है, मगर तुम तो उम्मीद से ज्यादा ही बदल गयी” ,अनुजा ने कहा। “ये बदलाव इसीलिए आया है क्यूं कि अब उम्मीदों को मैंने खुद से जोड़ दिया है” , अग्रजा ने अनुजा को समझाते हुए कहा। “ज़रा इस बात की गहराई बतलाओगी", अनुजा ने आग्रह किया। “ हां, क्यूं नहीं। जिंदगी में एक दौर ऐसा आता है जब तुम्हारी अन्य लोगों से की गई उम्मीदें टूटती जाती हैं, और तुम हताश महसूस करते हो, उस निराशा भरे माहौल से बचने का बेहतरीन तरीका ये ही है कि तुम हर उम्मीद को खुद से जोड़ दो” अग्रजा ने कहा। “ तो क्या खुद से की गई उम्मीदें टूटती नहीं हैं”, अनुजा ने पूछा। “ कभी कभी वो भी टूटती हैं, मगर वो उतनी तकलीफ़ नहीं देती हैं जितना कि दूसरों से लगाई उम्मीदें ”, अग्रजा ने अपनी बात को स्पष्ट किया।