हम तुम मैं बनूँ 'क़ाफ़िया' तुम 'रदीफ़' बनो, दोनों मिलकर एक 'अशआर' हो जाये। तुम बनो 'मतला' मैं बनूँ 'मक़्ता' क्या पता हम दोनों में 'प्यार' हो जाये। ©Govind Pandram #PoetInYou #क़ाफ़िया - तुकांत शब्द जो रदीफ़ के पहले लिखा जाता हैं। #रदीफ़ - क़ाफ़िया के बाद आने वाला शब्द जो अंत तक परिवर्तित नहीं होता। #अश'आर - एक से अधिक शेरों का समूह। #मतला - गजल का पहला शेर जो दो मिसरो (लाइन) से बना होता हैं। #मक़्ता - गज़ल का अंतिम शेर जिसमे गजलकार का नाम आता है,जिसे मक्ते का शेर या मक़्ता कहते हैं।