#Pehlealfaaz बात तब की है जब मैं सातवीं कक्षा मैं थी, और मुझे पता भी नहीं था कि मेरे अंदर एक छोटी सी कवियित्री छिपी हुई है, हाल ही में हुए निबंध लेखन की प्रतियोगिता में सिर्फ उन्हीं विद्यार्थियों के निबन्ध की प्रशंसा हुई, जिन्होंने अपना निबन्ध किसी और से लिखवाया था। मुझे उस बात का बहुत दुःख हुआ, अगले दिन छुट्टी थी, मैं छत पर गई, सोचने लगी कि इस बार तो किसी ने तारीफ ही नहीं की, काश अगली बार कविता लेखन की प्रतियोगिता हो, लेकिन फिर अचानक से मन में आया कि कविता तो मुझे भी नहीं लिखनी आती, तब लिखी मैंने अपनी पहली कविता, " यदि प्रकृति है हमारा जीवन, तो होगा अब खुशहाली का आगमन " लेकिन ना जाने किस संकोच और जिझक में मैंने वो कविता किसी को नहीं दिखाई, बल्कि अपनी एक कॉपी में छुपा के रख दी। जब मैं दसवीं कक्षा में अाई तो हिन्दी की क्लास में मैडम ने पहले पाठ के बाद ही तुकबंदी करने का होम वर्क दिया, तब सोचा कि इस ही कविता को ही दिखा देती हूं। अगले दिन क्लास में मैडम ने बहुत तारीफ की, दोस्तों ने कहा कि तुम तो कवियित्री निकली, घर पर सबने बहुत तारीफ की। मैं बहुत खुश हुई। तब से ही मैंने लिखना शुरू किया। सुनने में अजीब है, पर सच है, कुछ यूं ही मुलाकात हुई मेरी " मेरे पहले अल्फ़ाज़ " से। #Pehlealfaaz " मेरे पहले अल्फ़ाज़ "............. बात तब की है जब मैं सातवीं कक्षा मैं थी, और मुझे पता भी नहीं था कि मेरे अंदर एक छोटी सी कवियित्री छिपी हुई है,