बाबूजी एक वृक्ष से मैं टूटा हुआ हूँ अपने ही घर से छूटा हुआ हूँ देखो यारो सर पर न है छाव मेरे किस तरह धूप का मारा हुआ हूँ उसी वृक्ष का एक शाख था मैं किस तरह टूट कर गिरा पड़ा हूँ मैं पल-पल सिख रहा हूँ जुड़ने को इस तरह खुद से खुद को सींच रहा हूँ मैं सारी दुनिया का वट हो जाऊं सायद यही सोच कर लिख रहा हूँ ✍️ अमितेश निषाद ( सुमित ) ११/०५/२०१९ #NojotoQuote बाबूजी एक वृक्ष से मैं टूटा हुआ हूँ अपने ही घर से छूटा हुआ हूँ देखो यारो सर पर न है छाव मेरे किस तरह धूप का मारा हुआ हूँ