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#OpenPoetry प्रकृति का दूत

#OpenPoetry               प्रकृति का दूत              
नीला आकाश लगे अति सुंदर 
सुनहरी धरती महकता अंबर ।
वृक्ष की छांव और शीतलता 
फल झूल रहे है पुष्प महकता ।
पक्षि की चहचहाहट , प्रातः काल उठाने वाली 
माटि की खुशबू नींद से नींद चुराने वाली।
नदियों का संगम मन मोहने वाला
फिर कुछ दूर दिखा इक नाला।
नाले में था कचरा-कूड़ा 
उसमे नहा रहा था आदमी बूढा।
उस गंदे नाले में कुछ लोग कपड़े धो रहे थे
चहचहाहते पक्षी न जाने क्यों जोर जोर से रो रहे थे।
मैंने पूछा - क्या हुआ रुदन क्यों करते हो ....
किसने तुमको रुलाया है।
पक्षी बोली- किसी और ने नही तुम दुष्ट इंसानो ने प्रकृति को ठुकराया है।
पेड़ काटकर किताबों के पृष्ठ बनाते हो 
आज भी चूल्हा लकड़ी से जलाते हो।
पेड़ो को हटाकर पत्थरों का वन बना दिया है
हमारे घर उजाड़ कर हमें ही बाहरी करार दिया है।
धरती तोह धरती, जल और वायु को भी न बक्शा
कुछ ही सालो में बदल दिया इस धरा का नक्शा।
धुंआ इतना पैदा करते हो
की अब आहे भी धुंए की भरते हो।
वसुंधरा अब और न सह पाएगी 
अगर जरूरत महसूस हुई तोह प्रलय भी लाएगी।
सुना इस पक्षी ने मुझे क्या बतलाया है ....
प्रकृति का सम्मान करो , आखिर उसके आगे कौन टिक पाया है।
                                          आदित्य सिंह #OpenPoetry #hindipoetry Priyanka Mohammad Kamaluddin Rakesh Kumar Himanshu
#OpenPoetry               प्रकृति का दूत              
नीला आकाश लगे अति सुंदर 
सुनहरी धरती महकता अंबर ।
वृक्ष की छांव और शीतलता 
फल झूल रहे है पुष्प महकता ।
पक्षि की चहचहाहट , प्रातः काल उठाने वाली 
माटि की खुशबू नींद से नींद चुराने वाली।
नदियों का संगम मन मोहने वाला
फिर कुछ दूर दिखा इक नाला।
नाले में था कचरा-कूड़ा 
उसमे नहा रहा था आदमी बूढा।
उस गंदे नाले में कुछ लोग कपड़े धो रहे थे
चहचहाहते पक्षी न जाने क्यों जोर जोर से रो रहे थे।
मैंने पूछा - क्या हुआ रुदन क्यों करते हो ....
किसने तुमको रुलाया है।
पक्षी बोली- किसी और ने नही तुम दुष्ट इंसानो ने प्रकृति को ठुकराया है।
पेड़ काटकर किताबों के पृष्ठ बनाते हो 
आज भी चूल्हा लकड़ी से जलाते हो।
पेड़ो को हटाकर पत्थरों का वन बना दिया है
हमारे घर उजाड़ कर हमें ही बाहरी करार दिया है।
धरती तोह धरती, जल और वायु को भी न बक्शा
कुछ ही सालो में बदल दिया इस धरा का नक्शा।
धुंआ इतना पैदा करते हो
की अब आहे भी धुंए की भरते हो।
वसुंधरा अब और न सह पाएगी 
अगर जरूरत महसूस हुई तोह प्रलय भी लाएगी।
सुना इस पक्षी ने मुझे क्या बतलाया है ....
प्रकृति का सम्मान करो , आखिर उसके आगे कौन टिक पाया है।
                                          आदित्य सिंह #OpenPoetry #hindipoetry Priyanka Mohammad Kamaluddin Rakesh Kumar Himanshu
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