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ख़ुदग़र्ज़.. मेरा कोई दर्द तुझसे बर्दाश्त नहीं हो

ख़ुदग़र्ज़..

मेरा कोई दर्द तुझसे बर्दाश्त नहीं होता था,
आज बिस्तर पर तेरी हैवानियत देखी,

मैं दर्द से चिखती चिल्लाती रही,
सोचती हूं... क्यों मैं तेरी हवस की शिकार हुई..?

अब तो जैसे पैरों में खुद बेड़ियां बांध ली मैंने,
ना जाने इसे मोहब्बत कहूं, या गुस्ताख़ी..?

संदीप कोठार ख़ुदग़र्ज़..

मेरा कोई दर्द तुझसे बर्दाश्त नहीं होता था,
आज बिस्तर पर तेरी हैवानियत देखी,

मैं दर्द से चिखती चिल्लाती रही,
सोचती हूं... क्यों मैं तेरी हवस की शिकार हुई..?
ख़ुदग़र्ज़..

मेरा कोई दर्द तुझसे बर्दाश्त नहीं होता था,
आज बिस्तर पर तेरी हैवानियत देखी,

मैं दर्द से चिखती चिल्लाती रही,
सोचती हूं... क्यों मैं तेरी हवस की शिकार हुई..?

अब तो जैसे पैरों में खुद बेड़ियां बांध ली मैंने,
ना जाने इसे मोहब्बत कहूं, या गुस्ताख़ी..?

संदीप कोठार ख़ुदग़र्ज़..

मेरा कोई दर्द तुझसे बर्दाश्त नहीं होता था,
आज बिस्तर पर तेरी हैवानियत देखी,

मैं दर्द से चिखती चिल्लाती रही,
सोचती हूं... क्यों मैं तेरी हवस की शिकार हुई..?