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ठिठुरते सर्दी के मौसम में कुहासे की चादर देखकर सूर

ठिठुरते सर्दी के मौसम में कुहासे की चादर देखकर सूरज भी अपना मुंह ढककर सो जाता है।
देखता रहता है हसीनों के सपने जागता है तो कभी दूसरा पहर कभी दूसरा दिन हो जाता है।
कुहासे की चादर पड़ी हो गर आंखों पर तो दूर तक देखने का प्रयास करना व्यर्थ हो जाता है।
जीवन की राह दिखाई ना दे तो एक-एक कदम आगे बढ़ते रहो रास्ता खुद ही मिलता जाता है 🌝प्रतियोगिता-103 🌝
 
✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️

🌹"कुहासे की चादर "🌹

🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
ठिठुरते सर्दी के मौसम में कुहासे की चादर देखकर सूरज भी अपना मुंह ढककर सो जाता है।
देखता रहता है हसीनों के सपने जागता है तो कभी दूसरा पहर कभी दूसरा दिन हो जाता है।
कुहासे की चादर पड़ी हो गर आंखों पर तो दूर तक देखने का प्रयास करना व्यर्थ हो जाता है।
जीवन की राह दिखाई ना दे तो एक-एक कदम आगे बढ़ते रहो रास्ता खुद ही मिलता जाता है 🌝प्रतियोगिता-103 🌝
 
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