जाने कभी गुलाब लगती हे जाने कभी शबाब लगती हे तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती हे में पिए रहु या न पिए रहु, लड़खड़ाकर ही चलता हु क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती हे| @nikhardeepak420