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ये जो तेरे होंठों पर शाम की लाली सजी बैठी है, मेरे

ये जो तेरे होंठों पर शाम की लाली सजी बैठी है,
मेरे हाथों में तेरे हाथों की डाली सजी बैठी है,
अब रात के अंधियारे से तेरी आँखों में खोने सा लगा हूँ,
यूँ जब तू मेरे सामने पलकें सजाए बैठी है... Laali
ये जो तेरे होंठों पर शाम की लाली सजी बैठी है,
मेरे हाथों में तेरे हाथों की डाली सजी बैठी है,
अब रात के अंधियारे से तेरी आँखों में खोने सा लगा हूँ,
यूँ जब तू मेरे सामने पलकें सजाए बैठी है... Laali