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कैसे लिखूं, माॅ पर, निःशब्द हो जाता हूं मैं, ज्ञान

कैसे लिखूं,
माॅ पर,
निःशब्द हो जाता हूं मैं,
ज्ञान शून्य हो जाता हूं मैं ।
कैसे लिखूं, 
माॅ पर,
कोई शब्द ही नही,
जो माॅ को परिभाषित कर सके ।
कैसे लिखूं,
माॅ पर,
माॅ के त्याग को,
कोई परिभाषित कर सकता नही ।
कैसे लिखूं,
माॅ पर,
माॅ के दर्द को, 
कोई परिभाषित कर सकता नही ।
माॅ वो कल्पवृक्ष  है,
जिसकी छांव में ही ये जीवन गुलजार है,
नही तो ये जीवन,
बेजान है ।

--विभूति गोण्डवी
7800044130 #मॉ
कैसे लिखूं,
माॅ पर,
निःशब्द हो जाता हूं मैं,
ज्ञान शून्य हो जाता हूं मैं ।
कैसे लिखूं, 
माॅ पर,
कोई शब्द ही नही,
जो माॅ को परिभाषित कर सके ।
कैसे लिखूं,
माॅ पर,
माॅ के त्याग को,
कोई परिभाषित कर सकता नही ।
कैसे लिखूं,
माॅ पर,
माॅ के दर्द को, 
कोई परिभाषित कर सकता नही ।
माॅ वो कल्पवृक्ष  है,
जिसकी छांव में ही ये जीवन गुलजार है,
नही तो ये जीवन,
बेजान है ।

--विभूति गोण्डवी
7800044130 #मॉ