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घर मेरा भी ज़मीं पर ही है फिर क्यों औक़ात भूल जाऊं,,

घर मेरा भी ज़मीं पर ही है फिर क्यों औक़ात भूल जाऊं,,उड़ू चाहे कितना भी क्यों अपनी तालीम भूल जाऊं.

जिस्म जब मिट्टी है क्यों पोशाक पे इत्रायूँ,,रंग क्या है गोरा काला जब नज़र ही न आऊं.

बहस किस बात की जब समझ ही न पाऊं,,क्या ज़िद है झूठे अहंकार की जब झुक ही न पाऊं.

जात क्या है मेरी जब इंसान ही ना बन पाऊं,,कौन सा है धर्म जब खुदा से ही टकराऊ.

किस काम की ये जिंदगी जब कुछ कर ही ना पाऊं,,क्यों रखना है नाम जब खुद को ही ना जान पाऊं. 

Read full post in mention⬇️⬇️⬇️⬇️ #National_Youth_Day 

लेखक ✍️अमनदीप सिंह(पंजाब)

💥((((((घर मेरा भी ज़मीं पर है))))))💥

घर मेरा भी ज़मीं पर ही है,फिर क्यों औक़ात 
भूल जाऊं.
घर मेरा भी ज़मीं पर ही है फिर क्यों औक़ात भूल जाऊं,,उड़ू चाहे कितना भी क्यों अपनी तालीम भूल जाऊं.

जिस्म जब मिट्टी है क्यों पोशाक पे इत्रायूँ,,रंग क्या है गोरा काला जब नज़र ही न आऊं.

बहस किस बात की जब समझ ही न पाऊं,,क्या ज़िद है झूठे अहंकार की जब झुक ही न पाऊं.

जात क्या है मेरी जब इंसान ही ना बन पाऊं,,कौन सा है धर्म जब खुदा से ही टकराऊ.

किस काम की ये जिंदगी जब कुछ कर ही ना पाऊं,,क्यों रखना है नाम जब खुद को ही ना जान पाऊं. 

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लेखक ✍️अमनदीप सिंह(पंजाब)

💥((((((घर मेरा भी ज़मीं पर है))))))💥

घर मेरा भी ज़मीं पर ही है,फिर क्यों औक़ात 
भूल जाऊं.
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