हर शख्स अपनी नाक पर बैठा हुआ हैं , ज्यों उल्लू कोई शाख़ पर बैठा हुआ हैं । (१) बाजार में तगादियों की कमी नही है कोई , धन्ना सेठ भी इसी धाक पर बैठा हुआ है । (२) दिखता ही नही उसके सिवा कोई और मुझे, दिलबर मेरा, मेरी आँख पर बैठा हुआ है। (३) तेरी गली में आऊं और क़त्ल हो जाऊ, रक़ीब मेरा बस इसी ताक पर बैठा हुआ है । (४) इतनी जल्दी से न खुद को कमतरी से देख, कुज़ागर तेरा अभी तो चाक पर बैठा हुआ है । (५) ज़मी का होकर आसमाँ को नापने चला "राणा" आदम तू तो अभी अपनी राख़ पर बैठा हुआ है । (६) हर #शख्स अपनी #नाक पर बैठा हुआ हैं , ज्यों #उल्लू कोई #शाख़ पर बैठा हुआ हैं । (१) #बाजार में #तगादियों की कमी नही है कोई , #धन्ना सेठ भी इसी #धाक पर बैठा हुआ है । (२) #दिखता ही नही उसके #सिवा कोई और मुझे,