ये कोई कविता नहीं बस यूं ही.... दिल में आया और लिख दिया.... आगे बढ़े Caption पढ़े.... ऐसा कुछ खास नहीं लिखा.... बस यूं ही..............।। बस यूं ही................ ॠषि का फोन आया और मैं मिलने चला गया....... पहली मुलाकात कुछ ऐसे ही हुई उससे...... वो नारंगी कमीज अब अभी देखता हुं तो उसे देने वाले से ज्यादा वो याद आती है....... हां मोहब्बत उस वक्त नहीं हुई बेशक मुझे उससे पर पता जरुर लगा था उसके होने का........ ऐसे ही मिले थे हम....... हां बस यूं ही..............। कभी कभी ॠषि के वजह से होने लगी थी कुछ ज्यादा मुलाकातें......... कभी घूमने तो कभी मेरे कमरे में........ मेरा नाम मुसाफ़िर भी उसके मुंह से अच्छा लगने लगा......... कई दफा अपन