फेरकर मुंह तू जो खड़ी है बेखबर सुन ग़ज़ल आखिरी है लुट गए जो नज़ारे नज़र थे दिल तुझे मगर अपनी पड़ी है उस खता की मिल रही सजायें जो कि मैंने करी ही नहीं है घूमते सब लगाकर मुखौटे भेड़ीया नस्ल पर आदमी है यूँ करम रव तिरे हैं बहुत से जिन्दगी उस बिना बेबसी है है बड़ी कशमकश दिल करूँ क्या कल तलक थी ख़ुशी अब गमी है फासले दरमियाँ कम न होते दूर जैसे फ़लक से जमीं है गोद मे में मरुँ बस तिरी ही ये तमन्ना मिरी आखिरी है sapna manglik #shayri#brokenheart#sapnawritesup