क्या आपको है अंदाजा ज़रा भी.. कि कितना है आपसे प्रेम मुझे भी। आपको अंदाज़ा ही नहीं ज़रा भी..! कि कितना दर्द होता है आपकी आँखों के नम से, आपके अंदर घुटते हुए क्रंद से, हाँ... मैं भी सब समझता हूँ, ज़ुबा बोले न बोले प्रिय मैं आपको आँखों से पढ़ता हूँ, फिर अंगारों पे चलता हूँ, न पाता सुकूँ उस पल मैं ज़रा भी... शेष नीचे अनुशीर्षक मे पढ़ें इस कविता का आगाज़ मुझसे भले हुआ हो, पर इसका मौजूद स्वरूप और इसके अंजाम की ज़िम्मेदार फ़क़त “फरीदा” जी हैं. कोई कमी हो तो मेरे सर, और अगर कुछ अच्छा लगे तो उसमें मेरी गलती नही है।😁 क्रिकेट में , लाइफ में, हर जगह जो बेहतरीन फिनिश करे, क्रेडिट उसी का होता है, सो कविता के अंत मे मेरा नाम भले हो,पर बस नाम ही मेरा है। आइंदा और उम्मीद करेंगे कि ऐसे ही आप का सपोर्ट और गाइडेंस मिलता रहे। क्या आपको है अंदाजा ज़रा भी.. कि कितना है आपसे प्रेम मुझे भी। आपको अंदाज़ा ही नहीं