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-: हकिकत :- अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने

-: हकिकत :-
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको
क्या पाया क्या खोया जो प्राप्त नहीं हो पाया !!
लक्ष्य की कल्पना कर जीवन जीने वाले, इन राहों को ढूँढो
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको !!
कठनाईयां, सुख-दुख बहुत हैं इस पग में
फिसल मत जाना, इस मझधार में ...
जीवन के इस यात्रा में हो सकता हैं, सच्चाई  से रूबरू करने वाले ना मिलें ...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको !!
गुजरा हुआ वक्त शायद, अब वापस नहीं आ सकता, अपने भविष्य को सवारों ...
चाहत, लगन, परिश्रम दिखने से नहीं ,बल्कि इस सपने को हकिकत में  बदलो...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको
समुन्द्र रूपी जीवन में मंजिल मिल पाना आसन नहीं ...
कोशिश तो सब करते, भटक जातें हैं शायदक
सावधानियां सबमे होती हैं, परंतु गलतियाँ भी तो किसी से कम नहीं...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको !!
वक्त किसी का इंतजार नहीं करता, खुद को इसके साथ ढालो ...
प्रस्थितियां मजबूर कर देती हैं सबको अपने उम्मीद और विश्वासो को सदा कायम रखो ...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो,अपने अन्दर को झांको !!
कामयाबी सबको एक बार मौका देती हैं शायद
हो सकता है, इसमें अपने पहचान  की कमी हो ...
हिरे की ख्वाइश  सबमे होती हैं लेकिन कोयले से सभी दूर होते हैं
अपना कोई पहचान नहीं औरो की गुलामी करते हैं।
अपने किस्मत को। क्यों दोष देते हो, अपने अंदर को झांको !!                                                               
                                                                                                               © अभिषेक कुमार रंजन  Saloni Singh Nidhi Dehru
-: हकिकत :-
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको
क्या पाया क्या खोया जो प्राप्त नहीं हो पाया !!
लक्ष्य की कल्पना कर जीवन जीने वाले, इन राहों को ढूँढो
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको !!
कठनाईयां, सुख-दुख बहुत हैं इस पग में
फिसल मत जाना, इस मझधार में ...
जीवन के इस यात्रा में हो सकता हैं, सच्चाई  से रूबरू करने वाले ना मिलें ...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको !!
गुजरा हुआ वक्त शायद, अब वापस नहीं आ सकता, अपने भविष्य को सवारों ...
चाहत, लगन, परिश्रम दिखने से नहीं ,बल्कि इस सपने को हकिकत में  बदलो...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको
समुन्द्र रूपी जीवन में मंजिल मिल पाना आसन नहीं ...
कोशिश तो सब करते, भटक जातें हैं शायदक
सावधानियां सबमे होती हैं, परंतु गलतियाँ भी तो किसी से कम नहीं...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो, अपने अन्दर को झांको !!
वक्त किसी का इंतजार नहीं करता, खुद को इसके साथ ढालो ...
प्रस्थितियां मजबूर कर देती हैं सबको अपने उम्मीद और विश्वासो को सदा कायम रखो ...
अपने किस्मत को क्यों दोष देते हो,अपने अन्दर को झांको !!
कामयाबी सबको एक बार मौका देती हैं शायद
हो सकता है, इसमें अपने पहचान  की कमी हो ...
हिरे की ख्वाइश  सबमे होती हैं लेकिन कोयले से सभी दूर होते हैं
अपना कोई पहचान नहीं औरो की गुलामी करते हैं।
अपने किस्मत को। क्यों दोष देते हो, अपने अंदर को झांको !!                                                               
                                                                                                               © अभिषेक कुमार रंजन  Saloni Singh Nidhi Dehru