अजीब उलझनें हैं ये, कैसे कैसे रिश्ते हैं ये वक्त किसका हुआ है, हर शख्स अकेला है न कोई सन्नाटा है, न कोई चीख है सवाल ही सवाल है, न कोई जवाब है यहाँ झूठ ही सच है, सच अब नासाज़ है हर कोई तरजीह है, हर चेहरे पर नकाब है हर शख्स दुकान है, हर शख्स बिकाऊ है हर शख्स खरीददार है, हर शख्स नीलाम है दिन में यहाँ रात है, रात किसी की सहर है महफ़िलें सुनसान हैं, तनहाइयाँ उफान पर हैं ये शहर सबका सहारा है, शहर ही बेसहारा है । naseeb Singh #Road