कठिन है रास्ता ये जीवन की डगर का और मैं चल रहा हूं अपनी आंखे मूंदकर किस ओर ले जाएंगी ये राहें नहीं मालूम बस चल निकला हूं सफर पे मुसाफिर बनकर!! या तो मिलेगी मंजिल या फिर तजुर्बा कोई, मैं लौटूंगा नहीं डगर से कायर बनकर या तो चमकूंगा एक दिन जैसे आसमां में चमके चांद या फिर मर जाऊंगा कोई गुमनाम शायर बनकर!! कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज) ©Indresh Dwivedi #गुमनाम_शायर