घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है। अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है। जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना है। मौत लम्हे की सदा, जिंदगी उम्रों की पुकार मैं यही सोच के जिंदा हूँ कि मर जाना है। नशा ऐसा था कि मय-खाने को दुनियाँ समझा होश आया तो ख़याल आया कि घर जाना है। मेरे जज्बे की बड़ी कद्र है लोगों में मगर मेरे जज्बे को मेरे साथ ही मर जाना है। राहत इंदौर साहब ©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #street#rahat_indori_sahab