भगत, यह पत्र नहीं माफ़ीनामा है या ये कह लो कि तुम्हें बताना चाहता हूँ कि तुमने यूँ ही शहादत देदी यहाँ कुछ नहीं बदला । माफ़ कर देना हमें । माफ़ कर देना उन सभी हिन्द के लोगों को जिन्होंने तुम्हारी शहादत को ज़ाया कर दिया । माफ़ कर देना उन सब को जिनको भगत सिंह बस एक हीरो लगता है अपना swag दिखाने के लिए । माफ़ कर देना उन सबको जिसने तुम्हें कूल लगने के लिए टी शर्ट में तो छाप लिया और दिल मे नहीं छाप पाए । शुरुआत उस दिन से करता हूँ जिस दिन तुमने आख़िरी साँस ली थी । तुम्हारा इंकलाब जिंदाबाद का नारा जो तब से लेकर आज तक हमारे कानों में गूँज रहा है । उसके बाद उन अंग्रेजो ने तुम्हें फाँसी के बाद तुम्हारी लाश को टुकड़ो टुकड़ो में करके सतलज के किनारे फेंक दिया था । हम तुम्हारा अंतिम संस्कार भी ठीक से नहीं कर पाए थे । तुम हमेशा कहते थे न मौत ऐसी हो जो आने वाले पीढ़ी में इंकलाब ले कर आये बेषक तुम्हारी शहादत उस इंकलाब से भी बढ़ कर थी । लेकिन ये मुल्क़ जिसके लिए तुम हँसते हँसते कुर्बान हो गए उसमें इंकलाब नहीं पैदा हो पा रहा । हर कोई भगत दिखना चाहता है बनना नहीं चाहता । तुमने कहा था गोरे चले जायेंगे भूरों का साम्राज्य होगा सच कहा था यहाँ अब भूरों कि गुलामी है यहाँ लड़ाइयां एक पशु के मरने पर हो रहीं है यहाँ पर फसाद मंदिर बनेगा या मस्ज़िद इसको लेकर हो रहा है । हर किसी को अपना उल्लू सीधा करना है । चोरी भ्र्ष्टाचार घूसखोरी बलात्कार चरम पर हैं । दुःख की बात पता है क्या है, वो तुमको भी इसमें शामिल कर बैठें हैं तुम्हारे नाम का पुतला तसवीरें बेची जा रही हैं । तुम्हें एक प्रोडक्ट बना दिया है देशभक्ति का । लोगों को लगता है कि सिर्फ़ झगड़ना ही भगत बनना है उन्हें ये नहीं मालूम भगत बनने के लिए परिवार घर प्यार सब कुछ एक ओर रखना पड़ता है ।