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जिम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते, अपनी ख़्वाहिशों

जिम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते, अपनी ख़्वाहिशों को बिल्कुल भूल गए थे हम।
आत्म संतुष्टि मिलने लगी है जीवन में, अब अपनी ख्वाहिशों को पूरा करना बाकी है।
मुश्किल तूफानों के थपेड़ों ने मुश्किलों से लड़कर, हमें जीवन जीना सिखा दिया है।
जागने लगी हैं मन में नई-नई उमंगें, दिल में है खुशी पर लबों का मुस्कुराना बाकी है समय सीमा : 06.01.2021
                  9:00 pm
पंक्ति सीमा : 4
 
काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है।

आइए,
मिलकर कुछ नया लिखते हैं,
जिम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते, अपनी ख़्वाहिशों को बिल्कुल भूल गए थे हम।
आत्म संतुष्टि मिलने लगी है जीवन में, अब अपनी ख्वाहिशों को पूरा करना बाकी है।
मुश्किल तूफानों के थपेड़ों ने मुश्किलों से लड़कर, हमें जीवन जीना सिखा दिया है।
जागने लगी हैं मन में नई-नई उमंगें, दिल में है खुशी पर लबों का मुस्कुराना बाकी है समय सीमा : 06.01.2021
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