"नाव के एक छोर पर मै बैठी थी दूसरे छोर पर सृजन बैठा था" "हम दोनों एक दूसरे को नहीं देख रहे थे" "मगर फिर भी हमारी नजरें एक ही जगह थी" "हमारी नज़रे एक दूसरे से ना मिल कर भी मिल ही रही थी" "हम दोनों की नजरें डूबते हुए सूरज पर थी" वो चुपचाप से आ कर मेरे बगल में बैठ गया "ना मैंने कुछ पूछा ना उसने कुछ कहा" "मेरी नजरे अब भी कतरा-कतरा नदी मे घुलते सूरज पर थी और अब उसकी नजरों की तपिश को मैं खुद में महसूस कर रही थी" "जैसे सूरज सुबह से नदी को अपने रंग में रंगने के लिए मना रहा हो और आखिर ढलते ढलते सूरज ने नदी को मना ही लिया हो अपने रंग में रंगने को" "और जाते जाते ढलते हुए सूरज ने रंग ही दिया नदी को अपने सिंदूरी रंग में" "ठीक वैसे सृजन की नजरें भी रंगना चाह रही थी मुझे" मेरी लिखी कहानी"सृजन की चाहत" केे कुछ अंश ©Chanchal Chaturvedi #सृजन_की_चाहत #Chanchal_mann #story #boat