White दोनों किनारे दूर हैं साहिब जब कश्ती मझधार में हो कैसे खींचे कश्ती नाविक, चाहे दम कितना पतवार में हो रहेगा बेड़ा गर्त हमेशा जब तक डाकू सरकार में हो मुल्क़ तरक्की ख्वाब है साहिब चाहे नौरत्न दरबार में हों कोशिश उनकी ये रहती है मुद्दे न अखबार में हों कवि भला क्यों बुरा लिखेगा जब तक वो दरबार में हो इल्म कराना है फ़र्ज़ है अपना,जब शासक अहंकार में हो मुल्क के वास्ते गर अच्छा हो,तो विद्रोह मनसबदार में हो अमन , चैन और प्यार, मोहब्बत जैसे इक परिवार में हो "अनूप" ऐसे मिलकर रहो मुल्क में जैसे इक घर द्वार में हो ©Anoop Kumar Mayank Anoop kumar mayank's poetry 😊❤️💫💯 #anoopkumarmayank #anoopindergarh #wallpaper