आख़िर कब तक मुझे जमाने को मेरे ही प्यार की परीक्षा देनी पड़ेगी, आख़िर कब तक मुझे सबका भरोसा जीतने की कोशिश करनी पड़ेगी। आख़िर कब तक मुझे अपनों से अपनेपन का इंतजार करना पड़ेगा, आख़िर कब तक मुझे मेरी जिंदगी में मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। आख़िर कब तक मुझे यूँ ही चुपचाप हर रोज सब कुछ सहना पड़ेगा, आख़िर कब तक मुझे मेरी ख्वाहिशों को दिल में दबाकर रखना पड़ेगा। आख़िर कब तक मुझे अपने दिल की आवाज को अनसुना करना पड़ेगा, आख़िर कब तक मुझे इस जिंदगीं में जमाने के इम्तिहानों से गुजारना पड़ेगा। आख़िर कब तक मुझे यूँ ही चुपचाप घुट - घुट कर सहम कर जीना पड़ेगा, आख़िर कब तक मुझे यूँ ही चुपचाप घुट - घुट कर सहम कर जीना पड़ेगा। ♥️ Challenge-971 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।