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स्वर्ण बाली 4 चांद चोर रात काली, खिड़कियों पे ड

स्वर्ण बाली 4



चांद चोर रात काली, खिड़कियों पे डेरा डारी।
चांदनी समेटे सारी,  रूप को निहारे खाली।

झुके जैसे पुष्प डाली, वक्क्षो से हो तन भारी।
जतन सारी कर हारी, पल्लुओ में छिपती नारी।
दातो तले उंगली डाली, धड़के जीया हाली हाली।
नयनों को झुका के खाली, काम को बढ़ाए नारी।

©Shailendra Shainee Official #स्वर्ण बाली 4

#स्वर्ण बाली 4

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