रात के पैर जब पहरों की पख़ावज पर थाप देते हैं आवाजें, तपाक से, बिफर उठती है और तुनक जाती हैं कई कोस चली जाती हैं कानों का करवाँ बन कर और कहीं दूर किसी कासिद के हलक में रैंगती हैं हिचकियाँ बन कर... हिज्र के चेहरे पर चमचम भी स्याह होती है दिन... सूरज जला देता है रात... चाँदनी सुलगती है हिज्र की गलियों से #hindnama #kavitakosh