ठंडी आफ़ते गुलज़ार हिदायतें तेरी महज बस्ता सा है कुछ रंगीन यादों का कुछ नागुज़ार से अहसास कुछ बेहिसाब सी उल्फ़तें तेरी सिलसिले चले एक शाम तक ठहराव हुआ अब सांसो का एक रोज मिलूंगा तुझसे खाक होकर ए महजबीं अभी बाकी है किस्सा चन्द गीले शिकवों का।। #Theme