"कितने गमो को ही अपनी पलको मे छुपाती हैं, तब कही जाके इक लड़की स्त्री बन पाती हैं। खुद महीने मे कभी एक बार ही सज पाती हैं, मगर भाई बाप पति बेटो को रोज सजाती हैं। हम काम के बोझ को छुट्टियों मे कम करते हैं, वो मायके जाकर अपनी माँ का हाथ बटाती हैं। हमारी खुन्नशों को अक्सर वो चुपचाप सहती हैं, वो गमो को पलको मे छुपा अकेले मे बहाती हैं। बिन कुछ किये कई बार गुनहगार बन जाती हैं, जह़र पीती हैं कभी आग मे झोक दी जाती हैं। कितने ही जतन से भूख सहकर हमे खिलाती हैं, तब जाकर वो स्त्री माँ बनने का सौभाग्य पाती हैं। रोज ही हवस का शिकार होती हैं कितनी स्त्रीयाँ, तब कही जाकर कोई एक निर्भया कही जाती हैं। कितनी फूंकी जाती हैं घर की जरुरतो की खतिर, तब किसी एक के नाम की मोमबत्ती जल पाती हैं। समाज परिवार सत्ता से कितने संघर्षो को बाद तो, बर्ष मे एक दिन का विश्व महिला दिवस मनाती हैं। कितने गमो को ही अपनी पलको मे छुपाती हैं, तब कही जाकर के एक लड़की स्त्री बन पाती हैं।" महिला दिवस पर सादर समर्पित _अनुपम अनूप #WorldWomensDay #CelibratingLife #AnupamAnoop