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(जे पैड हैं जनाब कहां सुख पाते हैं) इनके बढ़ने की

(जे पैड हैं जनाब कहां सुख पाते हैं)

इनके बढ़ने की राह में 
अनेकों अड़ंगे आते है 
कभी बच्चे तोड़ तो कभी 
जानवर नोच जाते है 
बड़ी कठिनाइयों में बढ़ते हैं ये
और बढ़कर भी कहा बच पाते है
जे पेड़ है जनाब कहां सुख पाते हैं
इनके समर्पण को तो देखो
 इनसे बड़े बड़े घर महल बन जाते है
कभी चूल्हों में तो कभी चिताओं में जल जाते है
कितने तुफानों को झेलते तो
कितने टूट जाते है
 जे पैड हैं जनाब कहां सुख पाते हैं
ये मनुष्यो के कितने काम आते है
कभी बारिशों से तो कभी धूप से बचाते है
हमे ऑक्सीजन रूपी अमृत दे 
  तो स्वयं कार्बन रूपी जहर पी जाते है
  जे पैड हैं जनाब कहां सुख पाते हैं
  जे पैड हैं जनाब कहां सुख पाते हैं

©Durgesh Dewan
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