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टूटे पत्ते बिखरे पड़े हैं खुदराए उन चलती या सुनसा

टूटे पत्ते

बिखरे पड़े हैं खुदराए उन चलती या सुनसान राहों में 
अस्क़ाम देख उनकी, पहले शाखों ने फेंक दिया 
तो कुचले जा रहे बेदर्दी से उन जान-ओ-पैरों तले 
एक मुबाहात-ओ-कूवत-ए-ज़िद तो होगी ख़ुद पर 
कम-अज़-कम हमें कोई तोड़ तो नहीं सकता 
एक मौक़ा-ए-उम्मीद तो लगाए जी रहे होंगे वो 
कभी तो कोई तेज़ हवा का झोंका आएगा उन्हें 
इन सबीलों से कहीं दूर गुलुखलास उड़ाने के लिए

©Viraaj Sisodiya
  टूटे पत्ते,
तेरा अनुभव क्या कहता है?
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