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अब जाओ भी ठंड आ गया बसंत क्यूँ बादलों के पायदान पर

अब जाओ भी ठंड आ गया बसंत
क्यूँ बादलों के पायदान पर लौट-लौट  आती हो 
क्यूँ कोहरे की " चादर " बार-बार बिछाती हो
टूट रही है सूरज की ठिठुरन,बिखर रही है किरन-किरन
अब जाओ ......... आ गया बसंत 
          कलीयाँ खिल चुकी हैं, डालियाँ लद गयी है 
          पत्तियाँ दर्पण बन,दिखा रही उनका यौवन।
         प्रकृति पूरे श्रंगार पे है,वातावरण राग मुग्ध है।
          सूरज चाँद तारे दृश्य देखने को आतुर है ।
         अब हटा भी दो कोहरे की धुन्ध।
     आ गया बसंत अब जाओ ..... आ गया बसंत 
चिड़िया गाती डाली-डाली,प्रेमी-युगल लिखते पाती
पुष्प,मृग,मयूर झूमते नाचते गाते,वृक्ष प्रेम से झुक जाते 
शिव-पार्वती प्रेम की शिवरात्री साक्षी 
बसंती बयार प्रेम माधुर्य गुनगुनाती।
सबके अपने-अपने प्रेम प्रसंग।
आ गया बसंत अब जाओ ...आ गया बसंत 
        रंगों का मेला सजा कण-कण में इन्द्रधनुष चमका
        धरती ने ओढ़ा केसरिया "दुशाला(चादर)"
       धूप लगे जिसमें झिलमिल तारा
        लहराता,बलखाता क्षितिज पर स्पर्श करता गगन
        सब पर चढ़ा बसंती रंग 
आ गया बसंत। अब जाओ ... आ गया बसंत 
मन बन गया प्रकृति का शागिर्द 
आँखें बाबरी देखती इर्द-गिर्द 
बसंत रोज नया पाठ पढाती 
बदरी आकाश पर लिखती-मिटाती
कविवर लिखते कविता औ और छंद पे छंद
 आ गया बसंत। अब जाओ ... आ गया बसंत 
       पारुल शर्मा अब जाओ भी #ठंड आ गया बसंत
क्यूँ बादलों के पायदान पर लौट-लौट  आती हो 
क्यूँ कोहरे की " चादर " बार-बार बिछाती हो
टूट रही है सूरज की ठिठुरन,बिखर रही है किरन-किरन
अब जाओ ......... आ गया बसंत 
          कलीयाँ खिल चुकी हैं, डालियाँ लद गयी है 
          पत्तियाँ दर्पण बन,दिखा रही उनका यौवन।
         प्रकृति पूरे श्रंगार पे है,वातावरण राग मुग्ध है।
अब जाओ भी ठंड आ गया बसंत
क्यूँ बादलों के पायदान पर लौट-लौट  आती हो 
क्यूँ कोहरे की " चादर " बार-बार बिछाती हो
टूट रही है सूरज की ठिठुरन,बिखर रही है किरन-किरन
अब जाओ ......... आ गया बसंत 
          कलीयाँ खिल चुकी हैं, डालियाँ लद गयी है 
          पत्तियाँ दर्पण बन,दिखा रही उनका यौवन।
         प्रकृति पूरे श्रंगार पे है,वातावरण राग मुग्ध है।
          सूरज चाँद तारे दृश्य देखने को आतुर है ।
         अब हटा भी दो कोहरे की धुन्ध।
     आ गया बसंत अब जाओ ..... आ गया बसंत 
चिड़िया गाती डाली-डाली,प्रेमी-युगल लिखते पाती
पुष्प,मृग,मयूर झूमते नाचते गाते,वृक्ष प्रेम से झुक जाते 
शिव-पार्वती प्रेम की शिवरात्री साक्षी 
बसंती बयार प्रेम माधुर्य गुनगुनाती।
सबके अपने-अपने प्रेम प्रसंग।
आ गया बसंत अब जाओ ...आ गया बसंत 
        रंगों का मेला सजा कण-कण में इन्द्रधनुष चमका
        धरती ने ओढ़ा केसरिया "दुशाला(चादर)"
       धूप लगे जिसमें झिलमिल तारा
        लहराता,बलखाता क्षितिज पर स्पर्श करता गगन
        सब पर चढ़ा बसंती रंग 
आ गया बसंत। अब जाओ ... आ गया बसंत 
मन बन गया प्रकृति का शागिर्द 
आँखें बाबरी देखती इर्द-गिर्द 
बसंत रोज नया पाठ पढाती 
बदरी आकाश पर लिखती-मिटाती
कविवर लिखते कविता औ और छंद पे छंद
 आ गया बसंत। अब जाओ ... आ गया बसंत 
       पारुल शर्मा अब जाओ भी #ठंड आ गया बसंत
क्यूँ बादलों के पायदान पर लौट-लौट  आती हो 
क्यूँ कोहरे की " चादर " बार-बार बिछाती हो
टूट रही है सूरज की ठिठुरन,बिखर रही है किरन-किरन
अब जाओ ......... आ गया बसंत 
          कलीयाँ खिल चुकी हैं, डालियाँ लद गयी है 
          पत्तियाँ दर्पण बन,दिखा रही उनका यौवन।
         प्रकृति पूरे श्रंगार पे है,वातावरण राग मुग्ध है।
parulsharma3727

Parul Sharma

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