प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद जी की कालजयी रचना या यूं कहें मानव जाति के उद्भव एवं विकास का विश्लेषण करती रचना "कामायनी" के लज्जा सर्ग का अंश "नारी तुम केवल श्रद्धा हो"।
काव्यपाठ कुमार sir के स्मृति कार्यक्रम तर्पण से लिया गया है।उनके जैसा तो हो नही पाया फिर भी प्रयास किया है हमने।
त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हैं।
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