रात्रिवार्ता ये कैसी बना दी मानव दुनिया किया है विकास अनोखा एक पल में रात्रि एक पल में रोशनी बन गई हूं जैसे हवा का झोंका तेरी बढ़ती विकास दर और ये चकाचौंध बाज़ार ऊपर से मूझ पर करे ये सूरज और शुक्ल पक्ष वार मैं करती हूं भलाई तुम करते हो धोखा एक पल में रात्रि एक पल में रोशनी बन गई हूं जैसे हवा का झोंका मैं तुम्हे हर रोज सुलाती तुम मुझे हर रोज जागते मैं तुम्हे नींद दिलाती तुम मेरी नींद उड़ाते बन गई हूं जैसे दास "वियोगी" कभी भगाया कभी रोका एक पल में रात्रि एक पल में रोशनी बन गई हूं जैसे हवा का झोंका। - vijender saroya "viyogi"