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गुहार:- हर रोज़ सह -सह मार और तिरस्कार , तन-मन हो

गुहार:-
हर रोज़ सह -सह मार और तिरस्कार ,
तन-मन हो रहा है मेरा अब तो बेज़ार ।

सांसों की डोर टूटने ही वाली थी कि!!
कानों में पड़ी ममता की निर्मल पुकार।

दिन-रात गृहस्थी की चक्की में पिसती,
सास,नन्द,जेठानी, करती हैं अत्याचार।

द्रवित हृदय की वेदना में जीती-मरती हूं,
यहां कौन सुनेगा मेरी किस्से करें गुहार??

अर्चना तिवारी तनुज

©Archana Tiwari Tanuja
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15/03/2023

गुहार