तुम प्रेमी हो, तुम सखा हो, हो रक्षक मेरे , पालन-कर्ता हो, विचलित मन को दिशा दिखाते, सुखदाता, तुम ही मेरे दुख-हर्ता हो. तुम कण-कण में, तुम हर तन-मन में, जो लूँ श्वास तो तुम्हारी सुगंध मन मोह जाती, ओ कान्हा मेरे, अब जो मुड़ी हूँ, मैं ओर तेरे, ऐसा हो जाये, जो तेरी गलियों में ही, मैं खो जाती. खुली आँखों से ढूँढ़ा तुम्हें हर डगर, पर बंद आँखों से तुझको खुद के अंदर पाती, तेरी छाया जो थोरी धुंधली होती कभी जो मन में, बेचैनी से मैं घबराती. ले चल अब अपने धाम मुझे भी, तेरे चरणों में हूँ जीना चाहती, सखा है तू जो अब मेरा, और किसी की दोस्ती अब मुझे ना भाती। ©aditi chauhan Prayer to kanha ji