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जिस्मफरोश औरत ।। यह लफ्ज सुन के लोगों के दिमाग मे

जिस्मफरोश औरत ।।

यह लफ्ज सुन के लोगों के दिमाग मे बहुत से अजीब अजीब सवाल आते होंगे इस समाज कि नजर मे यह बहुत ही घिनौना काम  है । इस समाज मे रहने वाले लोग कभी इन्हें अपनाने कि कोशिश नहीं करते और न ही कभी सच जानने कि जबकि इतनी बुरी नजर से रेप के आरोपी को भी नहीं देखता यह समाज जितना कोठे पे रहने वालो को देखता है मैंने जब इनका सच जाना मुझे जितनी इस समाज से नफरत हुई उस्से कई जादा इनसे मुहब्बत । वो औरत लगभग 30 या 31 साल कि होगी देखने मे खूबसूरत पहले तो मुझे वो इसी समाज वाली औरत लगी बातों का सिलसिला शूरू हुआ नाम न मालूम होने के कारण में उन्हें जी जी कर के बात करता रहा मेरे बारे में बात हुई फिर मैंने पूछा वैसे आप इंहा कैसे पहले तो वो कुछ डरी कहने लगी अगर में अपनी असलियत बता दु तो तुम भी मुझे नफरत की निगाह से देखने लगेगो जैसे यह समाज मे रहने वाले देखते हैं । पहले तो मुझे कुछ अजीब लगा फिर मैंने उन्हें कहा आप मुझे अपना छोटा भाई  समझ लीजिये यह लफ्ज सुनकर वो थोड़ा मुस्कराई और कहने लगी मेरा भी परिवार था भाई बहेन मां बाप सब थे ।
शादी हुई और उसके कुछ सालों बाद ही पति का देहान्त हो गया । और उन्हें लगा मेरी वजह से  कर्म जली मनहूस अपने पति को खा गई हर वो गलत लफ्ज इस्तेमाल किया गया । और घर से धक्के मार कर निकाल दिया गया । अब में कहा जाती मायके जहां पिता का देहान्त हो चुका था एक भाई था अकेला में किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी सोचा घर मे बर्तन साफ कर के अपना अपनी बेटी का पेट पाल लूंगी । मगर जिस मुहल्ले जिस घर में जाती लोग यह कह कर धक्के मार देते कि यह तो मनहूस है अपने पति को खा गई । दर दर कि ठोकरे खाई पेट मे खाने का एक निवाला न था । इस समाज के लोग मनहूस कह कर ताने मारते कहा जाती किस के पास जाती हर दर से भगा दी जाती । आखिर थक हार कर एक कोठे पर पहुँची जहां न किसी ने मुझे मनहूस कहा और न ही गलत लफ्ज जहां कुछ बहने थी और एक माता जी इस समाज से जादा मुहब्बत उनमें थी और मुझे इसी कोठे पर सहारा मिला और अपनी और अपनी बेटी के सर के उपर छप्पर । अभी इतना ही कहा कि उनकी मंजिल आ गई और ओ उतर कर चली गई । 
और में इस सोच मे डूबा रहा कि गलत यह औरत है या वो लोग  जिन्होंने इसे घर से निकाला इसके ससुराल वाले जब इसको सहारे कि जरूरत थी तो इसे धक्के मार के निकाल दिये । इस समाज ने भी इसे सहारा नहीं दिया। इंसान को जिंदगी मे जब सहारे की जरूरत हो और उसे जहां से सहारा मिले उसे मुहब्बत उसी से हो जाती है ।
मेरे हिसाब से इसमे गलत ससुराल वाले और यह समाज 
आज मेरी नजर मे इस समाज से जादा कोठे के लिये हमर्ददी है जो बे सहारो का सहारा बनता है ।

Ashab Khan....
जिस्मफरोश औरत ।।

यह लफ्ज सुन के लोगों के दिमाग मे बहुत से अजीब अजीब सवाल आते होंगे इस समाज कि नजर मे यह बहुत ही घिनौना काम  है । इस समाज मे रहने वाले लोग कभी इन्हें अपनाने कि कोशिश नहीं करते और न ही कभी सच जानने कि जबकि इतनी बुरी नजर से रेप के आरोपी को भी नहीं देखता यह समाज जितना कोठे पे रहने वालो को देखता है मैंने जब इनका सच जाना मुझे जितनी इस समाज से नफरत हुई उस्से कई जादा इनसे मुहब्बत । वो औरत लगभग 30 या 31 साल कि होगी देखने मे खूबसूरत पहले तो मुझे वो इसी समाज वाली औरत लगी बातों का सिलसिला शूरू हुआ नाम न मालूम होने के कारण में उन्हें जी जी कर के बात करता रहा मेरे बारे में बात हुई फिर मैंने पूछा वैसे आप इंहा कैसे पहले तो वो कुछ डरी कहने लगी अगर में अपनी असलियत बता दु तो तुम भी मुझे नफरत की निगाह से देखने लगेगो जैसे यह समाज मे रहने वाले देखते हैं । पहले तो मुझे कुछ अजीब लगा फिर मैंने उन्हें कहा आप मुझे अपना छोटा भाई  समझ लीजिये यह लफ्ज सुनकर वो थोड़ा मुस्कराई और कहने लगी मेरा भी परिवार था भाई बहेन मां बाप सब थे ।
शादी हुई और उसके कुछ सालों बाद ही पति का देहान्त हो गया । और उन्हें लगा मेरी वजह से  कर्म जली मनहूस अपने पति को खा गई हर वो गलत लफ्ज इस्तेमाल किया गया । और घर से धक्के मार कर निकाल दिया गया । अब में कहा जाती मायके जहां पिता का देहान्त हो चुका था एक भाई था अकेला में किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी सोचा घर मे बर्तन साफ कर के अपना अपनी बेटी का पेट पाल लूंगी । मगर जिस मुहल्ले जिस घर में जाती लोग यह कह कर धक्के मार देते कि यह तो मनहूस है अपने पति को खा गई । दर दर कि ठोकरे खाई पेट मे खाने का एक निवाला न था । इस समाज के लोग मनहूस कह कर ताने मारते कहा जाती किस के पास जाती हर दर से भगा दी जाती । आखिर थक हार कर एक कोठे पर पहुँची जहां न किसी ने मुझे मनहूस कहा और न ही गलत लफ्ज जहां कुछ बहने थी और एक माता जी इस समाज से जादा मुहब्बत उनमें थी और मुझे इसी कोठे पर सहारा मिला और अपनी और अपनी बेटी के सर के उपर छप्पर । अभी इतना ही कहा कि उनकी मंजिल आ गई और ओ उतर कर चली गई । 
और में इस सोच मे डूबा रहा कि गलत यह औरत है या वो लोग  जिन्होंने इसे घर से निकाला इसके ससुराल वाले जब इसको सहारे कि जरूरत थी तो इसे धक्के मार के निकाल दिये । इस समाज ने भी इसे सहारा नहीं दिया। इंसान को जिंदगी मे जब सहारे की जरूरत हो और उसे जहां से सहारा मिले उसे मुहब्बत उसी से हो जाती है ।
मेरे हिसाब से इसमे गलत ससुराल वाले और यह समाज 
आज मेरी नजर मे इस समाज से जादा कोठे के लिये हमर्ददी है जो बे सहारो का सहारा बनता है ।

Ashab Khan....
ashabkhan1565

Ashab Khan

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