Nojoto: Largest Storytelling Platform

आज वक़्त बेवक़्त तुम्हारी याद आती रही मैंने चाहा क

आज वक़्त बेवक़्त तुम्हारी याद आती रही
मैंने चाहा कहीं एक कोने में रखूं उसे
पता था मसरूफ़ थे तुम कहीं
तुम्हें कनिश्त है माना मैंने
इस खयालात को अ़कीद भी की है
यह कोई ज़राफ़त नही
जो मैं इसे ज़राफ़तन लहजे में कह रहा हूं
मैं एक नया आशिक है ठहरा
नया ही सही मगर
मैं सलफ़ भी था अभी भी हूं
गर लफ़्ज हो मेरी ढही
तो मेरी माज़रत कबूल करना तुम सही। आज वक़्त बेवक़्त तुम्हारी याद आती रही
मैंने चाहा कहीं एक कोने में रखूं उसे
पता था #मसरूफ़ (व्यस्त) थे तुम कहीं
तुम्हें #कनिश्त (मंदिर) है माना मैंने
इस #खयालात को #अ़कीद (मजबूत) भी की है
यह कोई #ज़राफ़त (मज़ाक) नही
जो मैं इसे #ज़राफ़तन (मजाकिया) लहजे में कह रहा हूं
मैं एक नया आशिक है ठहरा
आज वक़्त बेवक़्त तुम्हारी याद आती रही
मैंने चाहा कहीं एक कोने में रखूं उसे
पता था मसरूफ़ थे तुम कहीं
तुम्हें कनिश्त है माना मैंने
इस खयालात को अ़कीद भी की है
यह कोई ज़राफ़त नही
जो मैं इसे ज़राफ़तन लहजे में कह रहा हूं
मैं एक नया आशिक है ठहरा
नया ही सही मगर
मैं सलफ़ भी था अभी भी हूं
गर लफ़्ज हो मेरी ढही
तो मेरी माज़रत कबूल करना तुम सही। आज वक़्त बेवक़्त तुम्हारी याद आती रही
मैंने चाहा कहीं एक कोने में रखूं उसे
पता था #मसरूफ़ (व्यस्त) थे तुम कहीं
तुम्हें #कनिश्त (मंदिर) है माना मैंने
इस #खयालात को #अ़कीद (मजबूत) भी की है
यह कोई #ज़राफ़त (मज़ाक) नही
जो मैं इसे #ज़राफ़तन (मजाकिया) लहजे में कह रहा हूं
मैं एक नया आशिक है ठहरा