हवा और दुपट्टा मेरी हृदयवासी मेरी प्रियतम के मुख चुनरी को कैसे छेड़ा , ए पवन तुम्हारी ये मजाल उस झोंके को क्यूं ना मोरा । वो आन मेरी सम्मान मेरी वो इश्क़ की है वरदान मेरी , ये गलती है तेरी अक्षम्य अब करेंगे तुमको दंडित हम । इस भूल की कीमत क्या होगी इसका है पवन को भान नहीं , या तो ख़ामोश रहूं बैठा। या पवन से मरी समर होगी । जो रण कौशल दिखलाएगा शत्रु को धूल चटाएगा , जो हारा वो यम का होगा रणविजय ही यहां अमर होगा । जय कुमार "जनार्दन #तेरीचुनरी #दुप्पटा #दुपट्टाऔरहवा #राधाकीचुनरी