बंजारा हूँ। गली गली फिरता हूँ। गली गली ठहरता हूँ। लोग देखता हूँ। लोगों के तासूर देखता हूँ। समय की तलाश में हूँ। पर समय ज़ाया ज़्यादा कर देता हूँ। यूँ कि कुछ सोचता रहता हूँ। कुछ बोलता रहता हूँ। हाँ अक्सर खुद से ही बोलता हूँ। सुन्ने वाला कहाँ यहाँ कोई। और इसमे वक़्त ज़ाया ज़्यादा हो जाता है। पर लोग कहते हैं बंजारा हूँ मैं। वक़्त की क़दर नहीं मुझे। सच कहते हैं शायद। क्योंकि आज भी कहीं भी ठहर जाता हूँ। किसी को भी पढ़ने लगता हूँ। किसी पर भी लिखने लगता हूँ। पर लिखना होता नहीं मुझसे। क्योंकि लिखता तो मैं तुम पर हूँ। फिर एक क़लम उठाता हूँ। दूर एक कौना पकड़ता हूँ। तुम्हारे ख़याल बुनता हूँ। उन्हें नज़्म का रूप देता हूँ। तब वक़्त ज़ाया नहीं होता मेरा। होता है क्या? क्या मालूम...मैं तो बंजारा हूँ। गली गली फिरता हूँ। गली गली ठहरता हूँ। - दी ईरिस्पान्सिब्ल मेवरिक बंजारा हूँ। #poetry #poet #नज़्म #dil_se_dil_tak #poets_of_nojoto #shayari #dripping_nibs #life_experiences #late_night_poetry #khayal