शीर्षक: यहां उम्र अनुभवों में बिताई है । लेखन - सिद्धार्थ राजगोर 'अनंत' दर दर की ठोकरें खाई है मैंने, भीतर की आग जागाई है मैंने, हवाएं अब ये शमा को बुझा ना पाएगी; तूफ़ान पे लगाम लगाई है मैंने। लकीरों की धार घिसाई है मैंने, महेनत की धूप जलाई है मैंने, लहेरे अब ये होंसले को डूबा ना पाएगी; समंदर में छलांग लगाई है मैंने। लगालो जोर, ताकत पूरी आजमाई है मैंने, अपने ही युद्ध की कमान संभाली है मैंने, तलवारे अब ये जुनून को झुका ना पाएगी ; रणभूमि में ही जिंदगी बिताई है मैंने। हर लब्स में हकीकत बिछाई है मैंने, आंखों में तस्वीरें छिपाई है मैंने, नफरतें अब ये हुस्न को मुरझा ना पाएगी; थोड़ी ही सही मगर इज्जत कमाई है मैंने। ऊंचाई आे से उड़ान लगाई है मैंने, गिरकर भी 'अनंत' मुस्कान दिखाई है मैंने, असफलता अब ये प्रयत्नों को रुका ना पाएगी ; यहां उम्र अनुभवों में बिताई है मैंने । ------@ सिद्धार्थ राजगोर 'अनंत' #उम्र_अनुभवो_मे_बिताई_है_मैने #Motivation #lifeexperience #rajgorsid #anant #share #Like #follow