इतनी खफा किस लिए, मुझसे ही वफ़ा किस लिए। है अगर कोई शिकवा तो खुल कर कह, यूं बसंत में,गुलाब मुरझाया किस लिए।। ये फूलबाग में फुलबारी किस लिए, तेरी सूरत इन फूलों से प्यारी किस लिए। अब के मौसम में हर कली मुस्कुराने लगी, फिर तेरी गालों की लाली किस लिए।। बुरा हूं पर बुरा किस लिए, सच बयां किया क्या इस लिए। हो अगर मोहलत तो मुझे माफ़ कर, यूं पूर्णिमा को चांद छिपा किस लिए।। बसन्त में ये खुशहाली किस लिए, पेड़ों पर हरी भरी डाली किस लिए। अब तो मीठी कोकिला भी कूं कूं करने लगी, फिर तुम्हारे ओठों की खामोशी किस लिए।। बहुत हो गया, कुछ तो बोलो, अपने कमल के कपोलों को जरा सा तो खोलो। जो दिल में हो तो बयां कर दो, तेरी हां और मेरी न में ये सवाली किस लिए।। -praveen #apkinarajagi