"जुआ" कैसी है यह बाजी,कैसा यह खेल है, काँच का घर है,हाथों मे गुलेल है, हाथ भी है मेरे,घर भी है मेरा, दर्पण भी मेरा है,मेरा ही है चहरा, अक्स भी मेरा ही बिखरा है,हस्ती भी मेरी ही टूटी है, कातिल भी मै ही हूँ,मेरा ही हाथ खूनी है, लगा दिया खुद को दांव पर,यह इस व्यपारी को क्या हुआ है, जुआ है,जुअा है,इश्क भी अजब जुअा है ॥ धडकनें लगी है दांव पर,साँसों पर भी बोली चढी है, क्या क्या ना लुटा दिया,जितने वाले की भी आँखे भरी है, वो कहते थे मेरी यादें साथ ना छोडेगी तेरा,देख तेरी यादें भी तराजू पे गोते खा रही है, सपने भी ना बचे मेरी रियासत के अाँगन मे,देख मेरी अाँखे भी आँसू से धोके खा रही है, जो शक्स लुटा दिया करता था दिल,यूँही दिलवालों पे, जो शक्स झुका दिया करता था दिल,यूँही उनकी राहों मे, अब गुम है वो शक्स जो कहता था इश्क खुदा है, जुआ है,जुआ है,इश्क भी अजब जुआ है ॥ - नमित रतुडी #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #olddiary #hindi #random #gamble