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प्रेम के अनंत पर जा तुम कहीं खो गए क्या इतना हि था

प्रेम के अनंत पर जा
तुम कहीं खो गए
क्या इतना हि था
तुम्हारे प्रेम का विस्तार, 
जीवन तो यहाँ से शुरू होता
जो बेहिसाब और अन्तहीन होता
सारे दोष खतम होते
सारी फ़िकर समाप्त होती
बस हम होते तुम होते
और प्रेम होता, 
फिर कोई ना पूछता
ना कोई टोकता
हम खेलते भीतर जन्मे 
ढ़ेरों उन्माद में
और रस लेते
एक अनंत जीवन का,

©Kavitri mantasha sultanpuri #प्रेम_मृत्यू_के_बाद
#KavitriMantashaSultanpuri
प्रेम के अनंत पर जा
तुम कहीं खो गए
क्या इतना हि था
तुम्हारे प्रेम का विस्तार, 
जीवन तो यहाँ से शुरू होता
जो बेहिसाब और अन्तहीन होता
सारे दोष खतम होते
सारी फ़िकर समाप्त होती
बस हम होते तुम होते
और प्रेम होता, 
फिर कोई ना पूछता
ना कोई टोकता
हम खेलते भीतर जन्मे 
ढ़ेरों उन्माद में
और रस लेते
एक अनंत जीवन का,

©Kavitri mantasha sultanpuri #प्रेम_मृत्यू_के_बाद
#KavitriMantashaSultanpuri