खुद्द के बलबुते पे खडे है संपणे काफी बडे है कयी राहो की सिडिया चढे है कयी बार गिरने से डरे है मुस्कीलो से लढ ते रहे है खुद्द से झगड ते रहे है फ़िर भी आज खडे है