कौन दिलाये दण्ड स्वयं अब, अपने ही कारिन्दों को। खुद की खातिर कौन चुनेगा, उन फाँसी के फन्दों को। हमने चुनकर खुद भेजा कुछ, व्यभिचारी प्रतिनिधियों को। सोचो कैसे दण्ड मिलेगा, बहसी और दरिन्दों को। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विनोद साँवरिया लोकतंत्र के खलनायक