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यह चर्चा भी विश्व में बराबर बनी रहती है कि हम प्रक

यह चर्चा भी विश्व में बराबर बनी रहती है कि
हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं,
उसका अमर्यादित दोहन कर रहे हैं।
पर्यावरण दूषित हो रहा है,
पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।
इसके बावजूद प्रकृति के
स्वरूप एवं कार्य की चर्चा नहीं होती। #21_दिन_का_लॉक_डाउन चल ही रहा है और #विज्ञान_का_ताण्डव  सब देख ही रहे हैं।
आज तो मैं बस यही कहना चाहूँगा कि मोदी जी द्वारा जो #9_मिनट_दीपक_जलाओ की बात कही गई है उसे सब लोग सहर्ष स्वीकार करें और जलाएं। यह भी प्रकृति की उपासना ही है।
:
सृष्टि के आरंभ काल में कृषि का विकास नहीं हुआ था। चारों ओर जल था, समुद्र थे, रेगिस्तान थे। जहां जो उपलब्ध हुआ, लोग उसी से जीवन यापन करते थे। जब कृषि का ज्ञान हुआ, सभ्यता आगे बढ़ी, अन्न का मानवीय स्वरूप विकसित होने लगा। मनुष्य की प्रकृति बदलने लगी। उसी के साथ आकृति और अहंकृति का स्वरूप भी बदला। समय के साथ मांसाहार का स्थान शाकाहार ने लेना शुरू कर दिया। विशेषकर कृषिप्रधान क्षेत्रों में। आकृति-प्रकृति-अहंकृति में बड़ा परिवर्तन आया। शरीर की त्वचा तक पतली पड़ गई। पाश्विक स्वभाव की आक्रामकता, हिंसा में कमी आई। चूंकि औषधियों में दुग्ध, दही, घृत, मधु, अमृत के अंश पशु शरीर के अनुपात में प्रचुर मात्रा में रहते हैं, अत: स्नेह-माधुर्य का विकास भी स्पष्ट हुआ।
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😊🙏😊
यह चर्चा भी विश्व में बराबर बनी रहती है कि
हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं,
उसका अमर्यादित दोहन कर रहे हैं।
पर्यावरण दूषित हो रहा है,
पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।
इसके बावजूद प्रकृति के
स्वरूप एवं कार्य की चर्चा नहीं होती। #21_दिन_का_लॉक_डाउन चल ही रहा है और #विज्ञान_का_ताण्डव  सब देख ही रहे हैं।
आज तो मैं बस यही कहना चाहूँगा कि मोदी जी द्वारा जो #9_मिनट_दीपक_जलाओ की बात कही गई है उसे सब लोग सहर्ष स्वीकार करें और जलाएं। यह भी प्रकृति की उपासना ही है।
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सृष्टि के आरंभ काल में कृषि का विकास नहीं हुआ था। चारों ओर जल था, समुद्र थे, रेगिस्तान थे। जहां जो उपलब्ध हुआ, लोग उसी से जीवन यापन करते थे। जब कृषि का ज्ञान हुआ, सभ्यता आगे बढ़ी, अन्न का मानवीय स्वरूप विकसित होने लगा। मनुष्य की प्रकृति बदलने लगी। उसी के साथ आकृति और अहंकृति का स्वरूप भी बदला। समय के साथ मांसाहार का स्थान शाकाहार ने लेना शुरू कर दिया। विशेषकर कृषिप्रधान क्षेत्रों में। आकृति-प्रकृति-अहंकृति में बड़ा परिवर्तन आया। शरीर की त्वचा तक पतली पड़ गई। पाश्विक स्वभाव की आक्रामकता, हिंसा में कमी आई। चूंकि औषधियों में दुग्ध, दही, घृत, मधु, अमृत के अंश पशु शरीर के अनुपात में प्रचुर मात्रा में रहते हैं, अत: स्नेह-माधुर्य का विकास भी स्पष्ट हुआ।
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