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दिल आवारा पँछी क़ैद, पिंजरे में होना न चाहे..! ख़्

 दिल आवारा पँछी क़ैद,
पिंजरे में होना न चाहे..!

ख़्वाहिशें लिए तमाम,
आज़ाद आकाश में होना चाहे..!

नहीं ज़ोर चले किसी का इस पर,
घर मोहब्बत का होना चाहे..!

ख़्वाबों के महल से निकल,
रूबरू हक़ीक़त से होना चाहे..!

सुबह से लेकर शाम तक,
फ़सल ख़ुशियों की बोना चाहे..!

कन्धे मज़बूत कर ख़ुद के यूँ,
ज़िम्मेदारियों को ढोना चाहे..!

सत्कर्मों की सजावट लिए,
हरपल सुकून से सोना चाहे..!

©SHIVA KANT
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