शीर्षक- "उपवन का वो संकल्पी वृक्ष" "उपवन का संकल्पी वृक्ष,हरियाली रंगो से निखरा । परोपकार ही कार्य है,पतझड़ समक्ष टूटकर बिखरा।। जो विचलित होता सोचकर,उस श्मशान वृक्ष को। रंगत हो चाहे ना हो,काम आता दूसरो को जलाने को। काम न था यह संकल्पी वृक्ष का,जो घिरा जरूर था अभावो से। परोपकार ही धर्म उसका,उठकर खड़ा होगा अपनी बाजुओ से।। विश्वास रखा उस वंसत पर,समय लगा पर आया जरूर। संकेत हुआ अपनी ऊर्जा का,पतझड़ी तूफान का उतरा गुरूर।। किनारे न मिल पाये यदि,जीवन बन गया हो बिंदु। हो अटल विश्वास यदि, किनारा नही लांघ पायेगा सिंधु।।" - धीरज कुमार गोस्वामी देश के ऊर्जावान युवाओ को प्रेरित करती यह कविता☺☺