होठों पे आते आते जो थम जाता है तेरे उस अनकहे से नाम में रक्खे हुए हैं हम सुनने को उम्दा शायरी बढ़ती रहे तड़प सो इस लिए निज़ाम में रक्खे हुए हैं हम कर दो डिलीट फोन से नंबर हमारा अब क्यूँ बे-वजह ही नाम में रक्खे हुए हैं हम करती है याद हम को वो बस सुब्ह इक दफा तुलसी के जैसे बाम में रक्खे हुए है हम होगा हमारा ज़िक्र यहां सालों साल अब उल्फत के हर कलाम में रक्खे हुए है हम बस प्यार के दो बोल है कीमत विशाल की कब से उसी ही दाम में रक्खे हुए हैं हम 221 2121 1221 212 #yqdidi #bestyqhindiquotes #दाम #विशालवैद #vishalvaid #शाम #नाम #लगाम आलोक श्रीवास्तव जी एक ग़ज़ल पढ़ी थी कई दिन पहले और उनके अशआर का ज़ायका जुबां पे तो था मगर काग़ज़ पे नही उतर रहा था... एक छोटी सी कोशिश की है , उम्मीद है आपको पसंद आएगी