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झूठ और सच इस झूठ सच के बाज़ार में मैंने परिवारों

झूठ और सच इस झूठ सच के  बाज़ार में
मैंने परिवारों को बिखरते देखा है।

इज्ज़त के खातिर ज़िन्दगी भर मरते रहने वाली को
मैंने सरेआम बदनाम होते देखा है।।

ज़बरदस्ती और झूठ की बुनियाद पे बने रिश्तों को
ताश के पत्तों की तरह ढेढ़ होते देखा है।।

क्या लिखूं , क्या कहूं रिश्तों की मर्यादा के बारे में
मैंने तो अपनों को ही दुश्मन बनते देखा है।। #jhuth_sach
#100th_poem😍
झूठ और सच इस झूठ सच के  बाज़ार में
मैंने परिवारों को बिखरते देखा है।

इज्ज़त के खातिर ज़िन्दगी भर मरते रहने वाली को
मैंने सरेआम बदनाम होते देखा है।।

ज़बरदस्ती और झूठ की बुनियाद पे बने रिश्तों को
ताश के पत्तों की तरह ढेढ़ होते देखा है।।

क्या लिखूं , क्या कहूं रिश्तों की मर्यादा के बारे में
मैंने तो अपनों को ही दुश्मन बनते देखा है।। #jhuth_sach
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